बैन के बाद भड़का युवा आंदोलन, ओली का इस्तीफा और भारत पर आरोप

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

नेपाल में इस वक्त हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। सब कुछ तब शुरू हुआ जब सरकार ने अचानक कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन कर दिया। ये कदम सरकार की तरफ से अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक करारा प्रहार माना गया। नतीजा – देशभर के युवा, खासतौर से Gen-Z, सड़कों पर उतर आए।

सोशल मीडिया बैन बना चिंगारी

सोशल मीडिया बैन के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन अब “Gen-Z Movement” के नाम से जाना जा रहा है। प्रदर्शनकारियों की भीड़ में ज़्यादातर युवा थे, जो मौजूदा सरकार की नीतियों से नाखुश थे।

रातोंरात हालात इतने बिगड़ गए कि हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आने लगीं। कई लोगों की जानें गईं और अंततः सरकार को भंग करना पड़ा

केपी शर्मा ओली का इस्तीफा और खुला पत्र

सरकार गिरते ही पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन इसके तुरंत बाद उनका एक खुला पत्र सामने आया, जो उन्होंने अपनी पार्टी के महासचिव को लिखा था।

इस पत्र में ओली ने Gen-Z से अपील की, लेकिन साथ ही भारत पर भी गंभीर आरोप लगाए। उनका दावा था कि अगर उन्होंने भारत के खिलाफ बयान न दिए होते, लिपुलेख, कालापानी, लिंपियाधुरा को नेपाल के नक्शे में शामिल न किया होता, या अयोध्या और भगवान राम पर विवादित बयान न दिया होता, तो आज उन्हें सत्ता नहीं गंवानी पड़ती।

राजनीति में भारत पर आरोप: क्या ये जिम्मेदारी से भागना है?

ओली ने साफ तौर पर कहा कि अगर वे भारत के खिलाफ न बोले होते, तो शायद आज भी प्रधानमंत्री होते। यह बयान भारत-नेपाल संबंधों को और तनावपूर्ण बना सकता है।

लेकिन सवाल उठता है कि जब आप अपने देश में राजनीतिक स्थिरता बनाए नहीं रख सके, तो उसके लिए किसी और को दोष देना कहां तक सही है?

शांति और संयम की अपील: मेयर बालेन शाह का बयान

काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने इस पूरे घटनाक्रम में बेहद संतुलित भूमिका निभाई। उन्होंने ट्वीट कर युवाओं से संयम बनाए रखने की अपील की एक अंतरिम सरकार बनाने का सुझाव दिया। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री बनाने की सिफारिश की।

उन्होंने Gen-Z की परिपक्वता और समझदारी की तारीफ की और कहा कि देश को अब स्थिरता की ओर ले जाना ज़रूरी है।

Gen-Z के कंधों पर अब लोकतंत्र की जिम्मेदारी

Nepal में यह आंदोलन सिर्फ एक राजनीतिक विरोध नहीं था, बल्कि यह एक जन चेतना की लहर थी। सोशल मीडिया बैन जैसी नीतियों के खिलाफ खड़ा होना, लोकतंत्र की रक्षा का प्रतीक बन गया।

लेकिन अब ज़रूरत है कि यह आंदोलन शांति और संविधान के दायरे में रहे। क्योंकि अगर इसकी दिशा नहीं संभाली गई, तो लोकतंत्र को फायदा नहीं, नुकसान हो सकता है।

नेपाल में जो हुआ, वह पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक चेतावनी है – युवा वर्ग अब खामोश नहीं रहेगा। सोशल मीडिया बैन जैसी नीतियां, राजनीतिक असंतुलन का कारण बन सकती हैं। केपी शर्मा ओली का इस्तीफा और भारत पर आरोप उनकी राजनीतिक विफलता को छुपा नहीं सकते।

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